Early Years and Education
Rama Mehta's parents were from Gujarat. Her father Nanalal Chamanlal Mehta was born in 1892 in Jaramatha, a small village near Ahmedabad. Her mother, Shantaben, was born in Ahmedabad in 1900 and after her initial education at the Govt. Girls High School, she was married to Shri Nanalal Mehta when she was 15 years old. After his initial education at Rajkot, and at Wilson College Bombay, NC Mehta obtained a BA in Natural Sciences and Economics at Fitzwilliam College, Cambridge and joined the Indian Civil Service in 1915. Much of his career was spent in the United Provinces, later known as Uttar Pradesh. His interest in Indian art began with his first posting as an ICS officer in Mathura where he saw some of the great masterpieces of Indian sculpture. A meeting with the great Shri Rai Krishna Dasa in 1917, by whom he was deeply impressed, led to his lifelong interest in Indian art, literature and painting.
He shared his deep knowledge in his 1926 book, Studies in Indian Painting, (Taraporevala Publication, Bombay) which remains to this day a major contribution to the subject. Rama grew up in Uttar Pradesh. Born in 1923, she was the youngest of four children, with one sister and two brothers. She was schooled in Nainital and graduated from Isabella Thoburn College, Lucknow, where she did her first degree and also became an accomplished bharatanatyam dancer. She then went to St. Stephens College, New Delhi for an MA in Philosophy. In 1946, she proceeded to the United States, where at Columbia University, New York, she spent two years specializing in Psychology and Sociology.
Her early life was moulded by experiences of belonging to a colonised country. Though her family was part of the western educated elite, she was privy to forms of racism in school and seeing her mother being derided for her non-western ways. These unhappy encounters with modernity on the one hand and her father’s scholarly pride in Indian culture shaped her sensibilities as a critic of western civilisation without discounting its benefits to emancipate women and greater material wellbeing. Her marriage to her husband, Jagat Mehta, who was from a traditional family in Udaipur, unlike her own nuclear family, also shaped her thinking. It gave her reason to value traditional mores notwithstanding their confining ways.
Subsequently, somewhere around 1956, she enrolled for a PhD in Delhi University. She chose the Bhakti Movement as the topic for her research. However, for a number of reasons, she later gave it up. At Delhi University she was mentored by eminent sociologists/anthropologists like Professor MN Srinivasan and Professor TN Madan. Rama’s lifelong teachers were working-class women and peasants she met in Udaipur and in her travels around the country. They gave her insights into their rich social lives and moral sensibilities.
प्रा रंभि क वर्ष और शि क्षा
रमा मेहता के मा ता -पि ता गुजरा त से थे । उनके पि ता ना ना ला ल चमनला ल मेहता का जन्म सन् 1892 में अहमदा बा द के पा स एक छो टे से गां व जरमा था में हुआ था । उनकी माँ शां ता बेन का जन्म सन 1900 में अहमदा बा द में हुआ था और उनकी प्रा रंभि क शि क्षा रा जकी य बा लि का उच्च मा ध्यमि क वि द्या लय में हुई थी । 15 वर्ष की आयु में शां ता बेन का वि वा ह श्री ना ना ला ल मेहता से हुआ। श्री एन.सी मेहता ने अपनी प्रा रंभि क शि क्षा रा जको ट और वि ल्सन कॉ लेज, मुंबई में प्रा प्त करने के बा द केंब्रि ज के फि ट्ज़वि लि यम कॉ लेज से प्रा कृति क वि ज्ञा न और अर्थशा स्त्र में बी ए की उपा धि प्रा प्त की । सन् 1915 में वें भा रती य सि वि ल सेवा से जुड़े । उन्हों ने अपने करि यर का अधि कां श समय युना इटेड प्रो वि न्सेज़, जि से बा द में उत्तर प्रदेश के रूप में जा ना जा ता है, में बि ता या । भा रती य कला में उनकी रूचि , मथुरा मे एक आई.सी .एस. अधि का री के रूप में अपनी पहली पो स्टिं ग के सा थ आरंभ हुई। वहाँ उन्हें, भा रती य मूर्ति कला की कुछ महा न कृति यों को देखने का अवसर प्रा प्त हुआ। सन् 1917 में महा न कला मर्मज्ञ श्री रा य कृष्ण दा स के सा थ हुई रमा उत्तर प्रदेष में पली -बढ़ीं । सन् 1923 में जन्मी रमा , चा र भा ई बहनों में सबसे छो टी थीं । उन्हों ने नैनी ता ल में स्कूली शि क्षा प्रा प्त की और इसा बेला थो बर्न कॉ लेज लखनऊ से स्ना तक की उपा धि प्रा प्त की और सा थ ही भरतना ट्यम की कुशल नृत्यां गना भी बनीं । इसके बा द वे दर्शनशा स्त्र में एम ए करने के लि ए सेंट स्टी फंस कॉ लेज नई दि ल्ली गईं। सन् 1946 में वे दो वर्षो के लि ए अमेरि का गई, जहां को लंबि या वि श्ववि द्या लय, न्यूया र्क में उन्हों ने मनो वि ज्ञा न और समा जशा स्त्र वि षयों में वि शेष यो ग्यता प्रा प्त की ।
उनका प्रा रंभि क जी वन एक ऑपनि वेशि क देश के नि वा सी हो ने वा ले अनुभवों से ढला था । हा लां कि उनका परि वा र अभि जा त्य वर्ग का हि स्सा था , लेकि न वे स्कूल में नस्लवा द के वि भि न्न स्वरूपों से रूबरू हुईं तथा उन्हों ने अपनी माँ को उनके गैर-पश्चि मी तरी कों के लि ए उपहा स का पा त्र हो ते हुए भी देखा । आधुनि कता के सा थ अपने कटु अनुभवों तथा अपने पि ता के भा रती य संस्कृति पर गर्व ने रमा की संवेदना ओ में पश्चि मी सभ्यता के प्रति आलो चक और प्रशंसक, दो नों का सम्मि श्रण रहा । इसके उपरां त उनका वि वा ह श्री जगत मेहता से हुआ, जो एक पा रंपरि क संयुक्त परि वा र से थे। इसने भी उनके वि चा रों को एक नया रूप दि या । उन्हों ने बंदि शों के बा वजूद परंपरा गत री ति -रि वा जो में नि हि त मूल्यों को भी समझा । सन् 1956 के आसपा स, उन्हों ने दि ल्ली वि श्ववि द्या लय में पी .एच.डी . के लि ए दा खि ला लि या । उन्हों ने अपने शो ध के वि षय के रूप में भक्ति आंदो लन को चुना । हा लां कि , कई का रणों से, बा द में उन्हों ने इसे छो ड दि या । दि ल्ली वि श्ववि द्या लय में उन्हें प्रो फेसर एम.एन. श्री नि वा सन और प्रो फेसर टी .एन. मदा न जैसे प्रख्या त समा जशा स्त्रि यों / मा नववि ज्ञा नि यों द्वा रा मेंटो रीं ग प्रदा न की गई। रमा के आजी वन शि क्षक, मजदूर वर्ग की महि ला एं और कि सा न थे जि नसे वे उदयपुर और देशभर में अपनी या त्रा ओं के दौ रा न मि ली । इन मुला का तों के द्वा रा रमा ने, समा ज में इन वर्गों के समृद्ध सा मा जि क जी वन और नैति क संवेदना ओं की गहरा इयों को समझा ।