Fiction Writing

Rama's primary interest was in studying how old values in traditional societies evolved and adjusted to the impact of modernization. She wrote three novels – 'Ramu', 'The Life of Keshav' and 'Inside the Haveli'. All of them, albeit obliquely, refer to the quest for education in conservative middle-class homes and the handicaps of poverty in satisfying that quest. 'Keshav' is the fictionalized story of a young boy who was the son of a chaprasi in Vidya Bhawan where he was awarded a scholarship to study. Through the sacrifices of his entire family, the boy works his way up from abject poverty and the bondage of caste laws to the greater promise of the university. Though at times he feels insecure and inadequate about the difference in his social status vis-à-vis his schoolmates. When he complains about this to his mother, she says: "We are poor, my child. And if the rich laugh at us, let them. These are small things. You can't give up a chance like this because for a while you are hurt. After all, you are the first boy in this village to go to a proper school. Everyone here is already talking about you." All her novels have Udaipur as their backdrop, 'Ramu' is a children's story of how a little boy enjoyed the Haryali Amavasya fair which is held during the monsoon months on the banks of Lake Fateh Sagar. In another instance, Keshav's mother replies to his father when he learns about her working as a common labourer breaking the stones. He finds it humiliating that she is made to work while he, the man of the house, is sitting at home because of his illness. In response, she proceeds to say: “What is so bad if a woman earns money? After all, aren't all the women in the villages working? Do you think they sit back in their huts and have maids to wait on them? The only difference is that I do one kind of work and they another, but all of us have to work."

उपन्या स लेखन

रमा की रुचि मुख्यतः , यह अध्ययन करने में थी कि पा रंपरि क समा जों में पुरा ने मूल्य कैसे वि कसि त हुए और वह आधुनि की करण के प्रभा व के सा थ कैसे समा यो जि त हुए। उन्हों ने ती न उपन्या स लि खे - ’रा मू’, ’द ला इफ ऑफ केशव’ और ’इनसा इड द हवेली ’। वे सभी उपन्या स अप्रत्यक्ष रूप से, रूढ़ि वा दी मध्यम वर्गी य घरों में शि क्षा की खो ज और उस खो ज को पूरा करने में गरी बी के का रण आने वा ली बा धा ओं का उल्लेख करते हैं। उनके सभी उपन्या सों की पृष्ठभूमि उदयपुर की है।’रा मू’ एक बच्चों की कहा नी है। यह बता ती है कि ए कि स प्रका र एक छो टा बा लक हरि या ली अमा वस्या मेले का आनंद लेता है, जो बरसा त के मही नों में, फतहसा गर झी ल के कि ना रे आयो जि त कि या जा ता है। ’केशव’ एक युवा लड़के की का ल्पनि क कहा नी है, जो वि द्या भवन के एक चपरा सी का बेटा था , जहां उसे पढ़ने के लि ए छा त्रवृत्ति प्रदा न की गई थी । अपने पूरे परि वा र के त्या ग से, केशव ने अत्यंत गरी बी और जा ति के बंधन से आगे नि कल कर वि श्ववि द्या लय स्तर तक की शि क्षा प्रा प्ति हेतु अपना रा स्ता बना या है। हा लां कि कभी -कभी वह अपनी और अपने सहपा ठि यों के बी च के सा मा जि क स्थि ति में अंतर को देख अपने को असुरक्षि त और अयो ग्य महसूस करता है। जब वह इस बा रे में अपनी मां से शि का यत करता है, तो वह कहती हैं “हम गरी ब हैं मेरे बच्चे, और अगर अमी र हम पर हंसते हैं, तो उन्हें हंसने दो , ये छो टी ची जें हैं।हैं तुम थो ड़ी देर के लि ए आहत हो कर यह मौ का नहीं छो ड़ सकते। आखि रका र, तुुुम इस गाँ व के पहले लड़के हो जो एक सही स्कूल में पढ़ने गया है। यहाँ हर को ई, पहले से ही तुम्हा रे ही बा रे में बा त कर रहा है।है" एक अन्य उदा हरण में, केशव की माँ उसके पि ता को बरा बर जवा ब देती हैं। जब केशव के पि ता को पता चलता है कि केशव की माँ ,माँएक मजदूर की तरह पत्थर तो ड़ने का का म कर रही हैं और वह जो घर का आदमी है, बी मा री के का रण घर पर बैठा है। यह केशव के पि ता को अपमा नजनक लगता है। इस पर केशव की माँ कहती हैं “अगर एक महि ला पैसा कमा ती है तो इसमें क्या बुरा ई है?है क्या गां वों की सभी महि ला एं का म नहीं करती हैं?हैं क्या आपको लगता है कि वे अपनी झों पड़ि यों में बैठकर बा ईयों की प्रती क्षा करती हैं?हैं फर्क सि र्फ इतना है कि मैं एक तरह का का म करती हूं और वे दूसरी तरह का । लेकि न, हम सभी को का म तो करना ही हो ता है।“

Inside the Haveli

Rama’s final novel, 'Inside the Haveli' was published in 1977 and was chosen for the National Award by Sahitya Academy in 1979. It was national recognition of the book as an authentic portrayal of a time when purdah was the prevalent way of life in middle-class homes. Alas, Rama had already passed away the previous year, and did not live to see this recognition bestowed on her. This book has been reprinted many times, translated into French and even into Urdu. It has had an exceptionally long shelf time and has been on the 'best sellers' list of Penguin for over a decade. In this book Rama describes the relationships in a traditional home where purdah was practiced and where there were stark inequalities between ‘servants’ and ‘masters’. And yet in this unequal setting, relationships emerged that were based on mutual care and respect. This is not to justify the deep structural inequalities of power, wealth and status, but to still look for spaces where there are possibilities of mutual respect, care and attention.Talking about a maid servant Pari, Geeta the progressive and educated protagonist of the book says: Inside the Haveli "They knew that she had to be given the same respect as one paid to a relative. She was a maid only in name and she never tried to be anything more". Later she says: "In those first few months her maid, Dhapu, was her only friend and guide. Dhapu told her the etiquette which was expected of daughters-in-law." She then goes on to speak about changing times post feudal rule: "In the new town the rich and poor are separated by the rose gardens; they do not know each other; they live separate lives. The only thing common between them seems the tarmac road, on which the poor too have the right to walk."\

As the book progresses there is an episode where Geeta wants to bring about change in the Haveli. She is thwarted by the maid servants and the elders of the family from sending Sita, the daughter of a maid, to school along with her own daughter Vijay. Sita's mother had left her as baby as she was humiliated by the husband. Geeta is furious at their resistance, but on reflection she has this to say: "All these years it was they who had seen that Lakshmi's child was covered in the cold night. They had given their share of delicacies to her. They had consoled her when she cried. They had nursed her when she was ill. All this they did because they knew she was one of them. It was because of them that Sita had not known what it was to be without a mother. Whereas Geeta realized she had watched their love and concern with admiration, but like an observer, looking on but not involved in Sita's life. Going to school would change her, and the maids would resent that, and that she could not replace their attention or love." The point that Rama Mehta makes about learning to understand the other. The maid servants appear conservative but it is out of care not indifference to the well-being of Sita. Both Geeta, the educated mistress, and the maid servants felt for Sita. They had different views but similar concerns. The book explores the question of what aspects of traditional society might be reproduced to rescue modern society from the atomisation of social relations and the loss of empathy.

इनसा इड द हवेली

रमा का अंति म उपन्या स, ’इनसा इड द हवेली ’ सन् 1977 में प्रका शि त हुआ था और सन् 1979 में इसे सा हि त्य अका दमी द्वा रा , रा ष्ट्री य पुरस्का र के लि ए चुना गया था । पुस्तक मे, मध्यमवर्गी य घरों में उस समय प्रचलि त पर्दा प्रथा का प्रमा णि त चि त्रण कि या गया है। अका दमी पुरस्का र इस चि त्रण को प्रदा न की गई रा ष्ट्री य मा न्यता थी । दुः खद रहा कि रमा का इसके पि छले वर्ष ही नि धन हो गया था , और वे इस सम्मा न को देखने के लि ए जी वि त नहीं रहीं । इस पुस्तक का कई बा र पुनः र्मुद्रण कि या गया है। इसका फ्रेंच तथा उर्दू भा षा में भी अनुवा द कि या गया है। इसकी ‘शेल्फ ला इफ’ असा धा रण रूप से लंबी रही है और एक दशक से अधि क समय तक यह पुस्तक, पेंगुइन की ’बेस्ट सेलर’ सूची में रही है। इस पुस्तक में रमा एक ऐसे पा रंपरि क घर में संबंधों का वर्णन करती हैं जहां पर्दा प्रथा का चलन था और ’नौ करों ’ और ’मा लि कों ’ के बी च भा री असमा नता एं थीं । फि र भी इस असमा न परि स्थि ति में, ऐसे रि श्ते उभरे जो परस्पर देखभा ल और सम्मा न पर आधा रि त थे। यहाँ सत्ता , धन और स्ति थि यों की गहरी संरचना त्मक असमा नता ओं को सही ठहरा ने के स्था न पर, उन जगहों की तला श करना है जहां पा रस्परि क सम्मा न, देखभा ल और आदर की संभा वना एं हैं। एक नौ करा नी , परी के बा रे में बा त करते हुए, गी ता , जो कि ता ब की प्रगति शी ल और शि क्षि त ना यि का हैं,हैंकहती हैं, “वे जा नते थे कि उसे वही सम्मा न दि या जा ना चा हि ए जो एकरि श्तेदा र को दि या जा ता है। वह केवल ना म की नौ करा नी थी और उसने कभी कुछ और बनने की को शि श नहीं की । बा द में गी ता कहती हैं “आरंभ के कुछ मही नों में धा पू (नौ करा नी ) ही उसकी एकमा त्र दो स्त और मा र्गदर्शक थी । धा पू ने गी ता को उस शि ष्टा चा र के बा रे में बता या जो बहुओं से अपेक्षि त था ।“ फि र वह सा मंती शा सन के बा द के बदलते समय के बा रे में बा त करते हुएँ कहती है, नए शहर में अमी र और गरी ब गुला ब के बगी चों के द्वा रा वि भा जि त हो ते हैं वे एक-दूसरे को नहीं जा नते;ते वे अलग-अलग जी वन जी ते हैं। उनके बी च केवल एक ची ज सा झी है,हैवह है पक्की सड़क, जि स पर गरी बों को भी चलने का अधि का र है।

पुस्तक में आगे, एक प्रसंग में गी ता हवेली में परि वर्तन ला ना चा हती हैं। उसे नौ करों और परि वा र के बुजुर्गों द्वा रा नौ करा नी की बेटी सी ता को , अपनी बेटी वि जय के सा थ स्कूल भेजने से रो का जा ता है। गी ता उनके इस प्रति रो ध पर क्रो धि त हो ती है। लेकि न चिं तन करने पर वह कहती हैः अपने पति द्वा रा अपमा नि त कि ए जा ने के का रण सी ता की माँ ने सी ता को बचपन में ही छो ड़ दि या था - “इतने वर्षों में ये ही लो ग थे जि न्हों ने सी ता का ध्या न रखा । जब वह रो ती थी , तो वे ही उसे सर्द रा तों मैं कंबल ओढ़ा ते थे तथा अपने हि स्से का खा ना भी उसे देते और सां त्वना देते थे। जब वह बी मा र थी तब उन्हों ने उसकी देखभा ल की । यह सब उन्हों ने इसलि ए कि या क्यों कि वे जा नते थे कि वह उनमें से एक है। यह उन्हीं के का रण था कि सी ता को कभी माँ की कमी महसूस नहीं हुई। इस एहसा स के बा द सी ता ने उन सभी के प्या र और परवा ह को प्रशंसा भरी नज़र से देखा । लेकि न एक प्रेक्षक की तरह, गी ता ने सी ता को देखा तो था पर वह, सी ता के जी वन में शा मि ल नहीं थीं । स्कूल जा ने से सी ता बदल जा एगी , और नौ करा नि यों को यह ना पसंद हो गा - गी ता का यह खया ल, नौ करा नि यों का सी ता के प्रति ध्या न या प्या र की जगह नहीं ले सकता ।“ दूसरों को समझने के बा रे में रमा मेहता कहती हैं, नौ करा नि यां रूढ़ि वा दी दि खती हैं लेकि न यह सी ता की भला ई के लि ए है न कि सी ता के कल्या ण के प्रति उदा सी नता के का रण। गी ता , एक पढ़ी -लि खी मा लकि न और नौ करा नि याँ दो नों ही सी ता के लि ए सो चती - महसूस करती थीं । उनके वि चा र अलग थे परंतु सरो का र समा न थे। पुस्तक इस सवा ल की छा न- बी न भी करती है कि , आधुनि क समा ज को सा मा जि क संबंधों के वि घटन और पा रंपरि क सौ हा र्द के नुकसा न से बचा ने के लि ए, पा रंपरि क समा ज के कि न पहलुओं को पुनर्नि हि त कि या जा ए

Scholarly Writings

Rama's scholarly studies are in her books entitled, 'The Western Educated Hindu Woman' and 'The Divorced Hindu Woman'. Her essay 'From Purdah to Modernity' has been included in a book by the same name, edited by B. R. Nanda and published by Nehru Museum. A further manuscript called, 'Hindu Family and Modern Values' was completed just before she passed away, but since the supporting data was not available, it has remained unpublished. With Catherine Galbraith, she co-authored 'India Now and Through Time' as a kind of introduction to the country. She also wrote incisive weekly articles for two national newspapers, Hindustan Times and The Tribune for five years and authored other occasional essays. Rama's intellectual insights came to be widely respected. The leitmotif of her writings was to recognize the humanity of people across social and economic classes and the lives and struggles of ordinary people. Her emphasis was that while social changes and emancipation of women were inevitable with urbanization and technological progress, the cohesive importance of the family, and the values it alone can inculcate, must not be jeopardized. To quote from her book The Western Educated Hindu Woman: “The cultural heritage of India was passed fromgeneration to generation through the help of women. When women lose touch with a tradition embodied in the way of life and lose faith in it due to alien influences, a threat is presented to the survival of traditional values. This could endanger the cohesion and stability of society unless something equally valid replaces the old.” Many scholars, Indian and Foreign, turned to Rama for her understanding of sociological problems. Rose Vincent Jurgensen, the wife of the French Ambassador in Delhi, an established author in her own right, toured Rajasthan with Rama and wrote a book in French on Women in India, called ‘Mohini’. In recognition of the original thinking in her articles and books, Rama was awarded a Fellowship by the Radcliff Institute for Independent Study (Harvard) in 1964 and again in 1967. She was also invited to deliver lectures, join conferences and workshops. In 1975 she gave a series of seminars at Sorbonne (Paris).

अका दमी लेखन

रमा के वि द्वता पूर्ण अध्ययन उनकी पुस्तकों ’द वेस्टर्न एजुकेटेड हिं दू वुमन’ और ’द डि वो र्स्ड हिं दू वुमन’ में नि हि त हे। उनके नि बंध ’फ्रॉ म पर्दा टू मॉ डर्नि टी ’ को इसी ना म की एक पुस्तक में सम्मि लि त कि या गया है, जि से श्री बी .आर. नंदा द्वा रा संपा दि त और नेहरू संग्रहा लय द्वा रा प्रका शि त कि या गया है।है उनके नि धन से ठी क पहले हि न्दू फॅमि ली एण्ड मॉ डर्न वैल्यूज़ ना मक एक और हस्तलि पि पूरी हो गई थी । इस हस्तलि पि के समर्थि त आकंडे उपलब्ध नहीं थे, इसलि ए यह अप्रका शि त रही । कैथरी न गैलब्रेथ के सा थ, उन्हों ने देश के परि चय स्वरूप ’इंडि या ना उ एंडएं थ्रू टा इम’ का सह-लेखन कि या । उन्हों ने दो रा ष्ट्री य समा चा र पत्रों , द हिं दुस्ता न टा इम्स और द ट्रि ब्यून के लि ए पां च सा ल तक, प्रभा वी सा प्ता हि क लेख भी लि खे।खे इसके अति रि क्त रमा ने, अन्य सम-सा मयि क नि बंधों का भी लेखन कि या । रमा की बौ द्धि क अंतर्दृष्टि का व्या पक रूप से सम्मा न कि या जा ने लगा । उनके लेखन की शब्दा वली वि भि न्न सा मा जि क और आर्थि क वर्गों के लो गों की मा नवता और आम लो गों के जी वन तथा संघर्ष की पहचा न करा ती है। यद्यपि शहरी करण और तकनी की प्रगति के सा थ सा मा जि क परि वर्तन और महि ला ओं की स्वतंत्रता अपरि हा र्य थे, इसके समा नां तर, रमा का मा नना था कि कुटुंब की एकजुटता के महत्व, और पा रि वा रि क मूल्यों को कभी खतरे में नहीं डा ला जा ना चा हि ए। उनकी पुस्तक द वेस्टर्न एजुकेटेड हिं दू वूमन से उद्धृतद्धृ कथनः “भा रत की सां स्कृति क वि रा सत महि ला ओं की मदद से पी ढ़ी दर पी ढ़ी आगे बढ़ी थी । जब महि ला एं जी वन शैली मे नि हि त परंपरा ओं से वि शेषत: बा हरी प्रमा णों के का रण संपर्क एवं आस्था खो देती हे तो , पा रंपरि क मूल्यों के अस्ति त्व के लि ए खतरा पैदा हो जा ता है। यह समा ज के सा मंजस्य और स्थि रता को खतरे में डा ल सकता है, जब तक कि कुछ समा न रूप से मा न्य मूल्य पुरा नों की जगह नहीं ले लेते।ते’’ कई भा रती य और वि देशी वि द्वा नों ने सा मा जि क समस्या ओं को समझने के लि ए रमा की मदद ली । दि ल्ली में फ्रां सी सी रा जदूत की पत्नी , रो स विं सेंट जुरगेन्सन (जो अपने आप में एक स्था पि त लेखि का थीं ), ने रमा के सा थ रा जस्था न का भ्रमण कि या और भा रत में महि ला ओं के वि षय पर फ्रेंच भा षा में ’मो हि नी ’ ना मक एक पुस्तक लि खी । मौ लि कता पूर्ण रमा के लेखों और पुस्तकों को मा न्यता देते हुए रेडक्लि फ इंस्टी ट्यूट फॉ र इंडि पेंडेंट स्टडी (हा र्वर्ड) द्वा रा सन् 1964 में और फि र सन् 1967 में फेलो शि प से रमा को सम्मा नि त कि या गया । उन्हें सम्मेलनों और का र्यशा ला ओं में व्या ख्या न देने तथा भा ग लेने हेतू आमंत्रि त कि या गया । सन् 1975 में उन्हों ने सो रबो न (पेरि स) मे एक सेमि ना र श्रंखला के अंतर्गत भी व्या ख्या न दि ये।